रमज़ान के बाद कौन-कौन से दिनों में रोज़ा रखना सुन्नत है? देखें कुरान व हदीस की दलीलों के साथ

रमज़ान एक ऐसा महीना है जो बहुत मुकद्दस है, इस महीने में पूरे दुनिया भर के मुसलमान रोज़ा(उपवास) रखते हैं न सिर्फ खाने पीने से बल्कि बेहयाई, झूठ बोलने, नमाज़ छोड़ने जैसे तमाम छोटे बड़े गुनाह से भी बचते हैं।

लेकिन अब रमज़ान 2025 खत्म हो चुका है शैतान आज़ाद हो चुका है, और हमारी मस्जिदें फिर खाली होने लगी है, ऐसे वक्त में हमें ज़रूरत है कि हम ज़्यादा से ज़्यादा नेक अमल करें ताकि हम अपने उस आत्म-संयम(Self Control) को अपने अंदर कायम रख पाएं।

इस आर्टिकल में हम बताएंगे कि रमज़ान के अलावा कौन कौन से और दिन और महीने हैं जिसमें रोज़ा रखना सुन्नत या नफ़्ल है, और जिसका अज्र भी बहुत ज्यादा है।

सच तो ये है कि सारे ही नेक अमल (जो कुरान और हदीस से साबित है) से हम अपने अंदर सेल्फ कंट्रोल को कायम रख सकते हैं लेकिन रोज़ा एक ऐसा अमल है जो इन सारे नेक अमल में सबसे आगे रहेगा।

On which days after Ramzan is it Sunnah to keep fast? See with arguments from Quran and Hadith
रमज़ान के बाद कौन-कौन से दिन रोज़ा रखना सुन्नत है? देखें कुरान व हदीस की दलीलों के साथ

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रमज़ान के अलावा वह मुबारक दिन जिसमे रोज़ा रखना सुन्नत है की पूरी लिस्ट

  1. शव्वाल के 6 रोज़े
  2. हर हफ्ते सोमवार और गुरुवार के रोज़े
  3. हर इस्लामी महीने की 13, 14, 15 तारीख (अय्याम-ए-बीज़)
  4. 9 और 10 मुहर्रम (या 10 और 11) – आशूरा के रोज़े
  5. 9 जिलहिज्जा( अरफा का रोज़ा)
  6. क़ज़ा रोज़े (छूटे हुए रमज़ान के रोज़े की भरपाई)
  7. सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा के लिए रखे गए नफ़्ल रोज़े (बिना किसी खास दिन के)

जानना ज़रूरी : रमज़ान में ज़रूर करें ये 8 काम 

1. शव्वाल के छह रोज़े

शव्वाल के छह रोज़े बहुत फ़ज़ीलत वाले रोज़े हैं इसका ज़िक्र सहीह मुस्लिम के हदीस नंबर 1164 में कुछ इस तरीके से मिलता है, कि अल्लाह के रसूल(सल्लः) ने फ़रमाया जिसने रमज़ान के रोज़े रखें और उसके बाद शव्वाल के छह रोज़े रखे तो यह पुरे साल लगातार रोज़ा रखने के बराबर है।

2. हर हफ्ते सोमवार के रोज़े

अल्लाह के रसूल(सल्लः) हर हफ्ते के दो दिन सोमवार और गुरुवार को रखते और रखने की सलाह दिया करते थे, तिर्मिज़ी की इस हदीस (747) में अल्लाह के नबी ने बताया है कि हर हफ्ते के दो दिन यानि सोमवार और गुरुवार को अल्लाह के सामने उनके बन्दों के आमाल पेश किए जाते हैं मैं पसंद करता हूँ कि जब मेरे अमाल पेश हो तो मैं रोज़े की हालत में रहूं।

तिर्मिज़ी की एक और हदीस 745 में हज़रत आएशा(रज़ि०) ने बताया कि नबी(सल्लः) सोमवार और गुरुवार को रोज़ा रखते थे। 

3. हर इस्लामी महीने की 13, 14, 15 तारीख (अय्याम-ए-बीज़)

अय्याम-ए-बीज का अर्थ है "सफेद दिनों", यह हर महीने की 13वीं, 14वीं और 15वीं तारीखें होती हैं, जिन्हें रोज़ा रखने के लिए मुबारक माना गया है। अबू दाऊद की एक हदीस 2449, जिसके रावी क़तादाह इब्न मल्हान अल-कायसी हैं। बताते हैं कि अल्लाह के रसूल(सल्लः) हमें अय्याम-ए-बीज यानि महीने की 13वीं, 14वीं और 15वीं तारीखों में रोज़ा रखने का हुक्म देते और फरमाते कि यह पूरे साल रोज़े रखने के जैसा है। 

4. 9 ज़ुल हिज्जः (अरफ़ा का दिन) और 10 मुहर्रम(अशुरा का दिन)

इब्न अब्बास फरमाते हैं कि जब नबी (सल्लः) मदीना आयें तो देखा की यहूदी एक दिन रोज़ा रखते हैं जब आप ने इसका पता लगाया तो यहूदियों ने बताया कि यह एक अच्छा दिन है इसी दिन अल्लाह ने बनी इस्राएल को उनके दुश्मन(फिरौन) ने निजात दिलाई थी इसलिए मूसा(अलैहिस्सलाम) ने इस दिन का रोज़ा रखा था, इसी बात पर अल्लाह के रसूल(सल्लः) ने फ़रमाया कि हम तुमसे ज़्यादा मूसा(अलैहिस्सलाम) को मानते हैं। इसीलिए नबी (सल्लः) ने इस दिन का रोज़ा रखा और सहाबा को भी रखने का हुक्म दिया। वह दिन अशुरा का था— सहीह बुखारी 2004

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सहीह मुस्लिम की हदीस 1162 में अल्लाह के नबी से अरफ़ा के रोज़े के बारे में पूछा गया तो आप ने फ़रमाया कि यह पिछले साल और आने वाले साल के गुनाह का कफ़्फ़ारा है। 

5. रमजान के क़ज़ा रोज़े (छूटे हुए रमज़ान के रोज़े की भरपाई)

कई बार तबियत ख़राब होने की वजह से या सफर पर जाने की वजह से हमसे रमज़ान का रोज़ा छूट जाता है ऐसे सूरह बक़रह की आयत 184 में अल्लाह हमें बताते हैं कि "अगर तुम में से कोई बीमार हो या सफर पर हो तो दूसरे दिनों में रोज़ा रख कर इसे पूरा करे। 

6. सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा के लिए रखे गए नफ़्ल रोज़े (बिना किसी खास दिन के)

रोज़ा कब रखे कब न रखें इस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है लेकिन फ़र्ज़(रमजान के रोज़े) के अलावा मैंने आपको सुन्नत और नफ़्ल रोज़े की लिस्ट आपको बता दी है, कोशिश करें कि आप इन ख़ास दिनों में रोज़ा रखें। 

Summary: 

रमज़ान एक मुक़द्दस महीना है जिसमें मुसलमान न सिर्फ़ भूख-प्यास से बल्कि हर बुरे अमल से बचते हैं, लेकिन रमज़ान के बाद भी यह ज़रूरी है कि हम नेकियों का सिलसिला जारी रखें। खासकर रोज़ा— जो आत्म-संयम (Self-Control) को मज़बूत करता है— उसे रमज़ान के अलावा भी कई खास दिनों में रखना सुन्नत या नफ़्ल है और उसका बड़ा सवाब है।

इस लेख में रमज़ान के बाद रोज़ा रखने के कुछ खास दिनों का ज़िक्र है, जिनमें:

  • शव्वाल के 6 रोज़े – रमज़ान के रोज़ों के बाद रखने से पूरे साल के रोज़े रखने का सवाब मिलता है (सहीह मुस्लिम 1164)।
  • हर हफ्ते सोमवार और गुरुवार – इन दिनों में आमाल पेश होते हैं, और नबी ﷺ रोज़ा रखते थे (तिर्मिज़ी 747, 745)।
  • हर इस्लामी महीने की 13, 14, 15 तारीखें (अय्याम-ए-बीज़) – इन सफेद दिनों के रोज़े पूरे साल रोज़ा रखने जैसा सवाब रखते हैं (अबू दाऊद 2449)।
  • 9 ज़ुलहिज्जा (अरफ़ा) और 10 मुहर्रम (आशूरा) – अरफ़ा का रोज़ा दो साल के गुनाहों का कफ्फ़ारा है, और आशूरा का रोज़ा बनी इस्राईल की निजात की याद में है (सहीह मुस्लिम 1162, बुख़ारी 2004)।
  • रमज़ान के छूटे हुए क़ज़ा रोज़े – ये फर्ज़ हैं और कुरआन (सूरह बक़रह 2:184) से साबित हैं।
  • नफ़्ल रोज़े – बिना किसी खास दिन के, सिर्फ़ अल्लाह की रज़ा के लिए रखे गए रोज़े भी बहुत सवाब के हक़दार हैं।

लेखक की तरफ से कुछ ख़ास बातें 

मैंने इसकी खोज खुद से की है और इस पोस्ट में जो भी दलील दिए गए हैं सब के सब सहीह हदीस और क़ुरान से हैं अगर आप इसमें कोई गड़बड़ी या कमी पाते हैं तो मुझे कमेंट कर के ज़रूर बतायें। और किसी रोज़े के बारे में ख़ास जानना हो तो आलिम या मुफ़्ती से बात करने की कोशिश करें। 

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