इस्तिखारा: सही फैसला लेने के लिए अल्लाह से रहनुमाई की दुआ
जब हमें कोई बड़ा फैसला लेना होता है— चाहे वह शादी से जुड़ा हो, नौकरी का हो, या किसी दूसरे अहम मामले का— तो अकसर हमारे दिल और दिमाग में उलझन बनी रहती है। ऐसे मौकों पर इस्लाम में इस्तिखारा करने की हिदायत दी गई है। इस्तिखारा का मतलब है अल्लाह से सही राह दिखाने की दुआ माँगना। यह एक खास नमाज़ और दुआ होती है, जिसे करने से अल्लाह हमें बेहतर फैसले की तरफ रहनुमाई करता है।
इस लेख में हम जानेंगे कि
- इस्तिखारा क्या है?
- इस्तिखारा का सही तरीका
- इस्तिखारा की दुआ
- इस्तिखारा करने के फायदे और इसके सही मायने
अगर आप किसी उलझन में हैं और सही फैसला लेना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए बेहद फायदेमंद होगा।
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इस्तिखारा क्या है? सही तरीका, दुआ और इसके फायदे जानें |
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इस्तिखारा क्या है?
इस्तिखारा का मतलब है अल्लाह से सही हिदायत और रहनुमाई की दुआ माँगना, खासकर तब जब इंसान किसी अहम फैसले को लेकर दुविधा में हो। यह एक खास इबादत है, जिसमें दो रकात नमाज़ अदा की जाती है और उसके बाद एक ख़ास दुआ पढ़ी जाती है। इस दुआ के जरिए बंदा अल्लाह से यह अर्ज़ करता है कि जो भी फैसला उसके लिए दुनिया और आखिरत में बेहतर हो, अल्लाह उसे उसी दिशा में ले जाए और अगर कोई चीज़ उसके लिए नुकसानदेह हो, तो उससे दूर कर दे। इस्तिखारा करने से इंसान के दिल को सुकून और इत्मीनान मिलता है, क्योंकि वह अपने फैसले को अल्लाह की रहमत और हिकमत के सुपुर्द कर देता है।
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सहीह बुखारी के हदीस 1166 से यह दलील मिलता है कि नबीﷺ सहाबा को इस्तिखारा की जानकारी ऐसे देते जैसे की वह क़ुरान सिखाते थे। इसी हदीस में इसका तरीका और दुआ भी दिया गया है जिसे हम आगे बताएँगे
इस्तिखारा का सही तरीका
इस्तिखारा करने का तरीका बहुत ही आसान और सुन्नत के मुताबिक है। जब कोई व्यक्ति किसी महत्वपूर्ण फैसले को लेकर असमंजस में हो, तो उसे चाहिए कि वह इस्तिखारा करे और अल्लाह से रहनुमाई तलब करे। इस्तिखारा करने के लिए सबसे पहले वुज़ू करके दिल की पाकीज़गी के साथ फ़र्ज़ के अलावा दो रकात नफ़्ल नमाज़ अदा करनी चाहिए। इस नमाज़ की पहली रकात में सुरह फ़ातिहा के बाद कोई भी सुरह और दूसरी रकात में सुरह फ़ातिहा के बाद कोई भी सुरह पढ़ी जा सकती है।
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नमाज़ खत्म होने के बाद इस्तिखारा की खास दुआ पढ़ी जाती है, जिसमें अल्लाह से यह गुज़ारिश की जाती है कि अगर यह काम (जिसके लिए इस्तिखारा किया जा रहा है) मेरे लिए, मेरे दीन, दुनिया और आखिरत के लिहाज से बेहतर हो, तो इसे मेरे लिए आसान बना दे और इसमें बरकत अता कर। और अगर यह मेरे लिए नुकसानदेह हो, तो इसे मुझसे दूर कर दे और मुझे बेहतरीन विकल्प अता कर।
इस्तिखारा करने के बाद इंसान को अल्लाह पर भरोसा रखते हुए अपने दिल के झुकाव को समझना चाहिए लेकिन दिल में जिस तरफ सुकून और इत्मीनान महसूस हो, वही बेहतर फैसला माना जाता है। साथ ही, यह ज़रूरी है कि इंसान अपने नफ्सी ख़्यालात और इच्छाओं से हटकर अल्लाह की मर्ज़ी को तवज्जो दे और उसी पर भरोसा करे।
इस्तिखारा के बाद मिलने वाली रहनुमाई हर इंसान के लिए अलग हो सकती है। किसी को दिल का झुकाव महसूस होगा, तो किसी को हालात खुद ब खुद बेहतर दिशा में जाते हुए नजर आएंगे। इसलिए इस्तिखारा के बाद जल्दबाजी न करें, बल्कि सब्र, दुआ और तवक्कुल के साथ सही समय पर फैसला लें।
इस्तिखारा की दुआ
इस्तिखारा की दुआ एक खास दुआ है जिसे अल्लाह के रसूल ऐसे सिखाते थे जैसे की क़ुरान सिखाते थे, इस दुआ में इंसान अल्लाह से अपने फैसले के लिए रहनुमाई और भलाई की दुआ करता है। यह दुआ नमाज़-ए-इस्तिखारा(Salat ul Istikhara) के बाद पढ़ी जाती है और इसमें अल्लाह से यह इल्तिजा की जाती है कि अगर वह काम (जिसके लिए इस्तिखारा किया जा रहा है) उसके दीन, दुनिया और आखिरत के लिए बेहतर हो, तो उसे आसान बना दे और उसमें बरकत अता करे। लेकिन अगर वह काम नुकसानदेह हो, तो उसे दूर कर दे और उसके बदले बेहतरीन विकल्प प्रदान करे।
इस्तिखारा की दुआ इस प्रकार है:
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Istikhara Ki Dua With Translation |
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْتَخِيرُكَ بِعِلْمِكَ، وَأَسْتَقْدِرُكَ بِقُدْرَتِكَ، وَأَسْأَلُكَ مِنْ فَضْلِكَ الْعَظِيمِ، فَإِنَّكَ تَقْدِرُ وَلَا أَقْدِرُ، وَتَعْلَمُ وَلَا أَعْلَمُ، وَأَنْتَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ، اللَّهُمَّ إِنْ كُنْتَ تَعْلَمُ أَنَّ هَذَا الْأَمْرَ خَيْرٌ لِي فِي دِينِي وَمَعَاشِي وَعَاقِبَةِ أَمْرِي أَوْ قَالَ فِي عَاجِلِ أَمْرِي وَآجِلِهِ فَاقْدُرْهُ لِي وَيَسِّرْهُ لِي ثُمَّ بَارِكْ لِي فِيهِ، وَإِنْ كُنْتَ تَعْلَمُ أَنَّ هَذَا الْأَمْرَ شَرٌّ لِي فِي دِينِي وَمَعَاشِي وَعَاقِبَةِ أَمْرِي أَوْ قَالَ فِي عَاجِلِ أَمْرِي وَآجِلِهِ فَاصْرِفْهُ عَنِّي وَاصْرِفْنِي عَنْهُ وَاقْدُرْ لِيَ الْخَيْرَ حَيْثُ كَانَ ثُمَّ أَرْضِنِي
इसका तर्जुमा:ऐ अल्लाह! मैं तेरे इल्म के जरिए खैर माँगता हूँ और तेरी कुदरत के जरिए ताकत तलब करता हूँ, और तुझसे तेरे बड़े फज़ल का सवाल करता हूँ। बेशक तू क़ादिर है और मैं क़ादिर नहीं, तू जानता है और मैं नहीं जानता, और तू ग़ैबों का जानने वाला है। ऐ अल्लाह! अगर तू जानता है कि यह काम (जिसके लिए इस्तिखारा किया जा रहा है) मेरे दीन, मेरी रोज़ी और मेरे अंजाम के लिहाज से अच्छा है, तो इसे मेरे लिए मुक़द्दर कर, इसे मेरे लिए आसान बना और इसमें बरकत अता कर। और अगर तू जानता है कि यह काम(जिसके लिए इस्तिखारा किया जा रहा है) मेरे लिए नुकसानदेह है, तो इसे मुझसे दूर कर दे और मुझे इससे दूर कर दे, और मेरे लिए जहाँ भी भलाई हो, उसे मुक़द्दर कर दे और मुझे उससे राज़ी कर दे।
कैसे पढ़ें:
जब इस दुआ को पढ़ें, तो "हाज़ा अल-अम्र" (هَذَا الْأَمْرَ) पर पहुँचने के बाद उस काम का जिक्र करें जिसके लिए इस्तिखारा कर रहे हैं। अगर अरबी में कहना मुश्किल हो, तो मन में ही उस काम को सोच सकते हैं।यह दुआ इंसान को अपनी इच्छाओं के बजाय अल्लाह की मर्ज़ी पर भरोसा करने की तालीम देती है, जिससे वह हर फैसले में अल्लाह की हिकमत को प्राथमिकता दे सके।
इस्तिखारा करने के फायदे और इसके सही मायने
इस्तिखारा का असल मकसद यह है कि इंसान अपने फैसलों में अल्लाह की रहनुमाई और हिकमत को शामिल करे। जब कोई इंसान किसी मुश्किल फैसले में उलझा होता है और उसे यह समझ नहीं आता कि कौन सा रास्ता बेहतर होगा, तो इस्तिखारा उसे सही दिशा और दिमाग़ी सुकून प्रदान करता है। यह एक ऐसी इबादत है, जिससे इंसान अपनी इच्छाओं और तर्कों के बजाय अल्लाह की मर्ज़ी पर भरोसा करना सीखता है।
इस्तिखारा करने के कई फायदे हैं:
- अल्लाह की रहमत और हिदायत मिलती है – जब इंसान अल्लाह से सही रास्ते की दुआ करता है, तो अल्लाह उसकी मदद करता है और उसे वह रास्ता दिखाता है जो उसके लिए सबसे बेहतर होता है।
- दिल को सुकून और इत्मीनान मिलता है – कई बार इंसान किसी फैसले को लेकर बेचैन होता है, लेकिन इस्तिखारा करने के बाद उसे मानसिक शांति मिलती है और उसका दिल उसी फैसले की तरफ झुकने लगता है जो अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक होता है।
- गलत फैसले से बचने में मदद मिलती है – इस्तिखारा इंसान को उन फैसलों से दूर रखता है, जो उसके लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। अगर कोई काम उसके लिए सही नहीं है, तो अल्लाह उसे उससे दूर कर देता है और बेहतर विकल्प अता करता है।
- तवक्कुल (अल्लाह पर भरोसा) मजबूत होता है – जब कोई इंसान इस्तिखारा करता है, तो वह अपने फैसले को पूरी तरह से अल्लाह के सुपुर्द कर देता है, जिससे उसका ईमान और मजबूत होता है।
- मुश्किल हालात में सही फैसला लेने में मदद मिलती है – जिंदगी में ऐसे कई मौके आते हैं जब हालात जटिल होते हैं और सही-गलत में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। इस्तिखारा इन हालात में इंसान को सही निर्णय लेने में सहायता करता है।
इस्तिखारा के सही मायने
कई लोग यह समझते हैं कि इस्तिखारा करने के तुरंत बाद कोई सपना आएगा या कोई अलामत नजर आएगी, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है। इस्तिखारा का असली मतलब है अपने फैसले को अल्लाह के हवाले करना और फिर हालात और अपने दिल की कैफियत पर गौर करना। अगर दिल किसी एक फैसले की तरफ झुकता है और उसमें आसानी नजर आती है, तो समझ लेना चाहिए कि वही अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक बेहतर रास्ता है। अगर फिर भी उलझन हो, तो इसे दोहराया जा सकता है और किसी समझदार, दीनदार व्यक्ति से मशवरा किया जा सकता है। इन सब के अलावा उस काम के लिए अपनी मेहनत भी बहुत ज़रूरी है, अल्लाह कोशिश करने वालो की मदद करता है।
इस्तिखारा अल्लाह की दी हुई एक नेमत है, जिससे इंसान हर छोटे-बड़े फैसले में रहनुमाई हासिल कर सकता है। यह सिर्फ मुश्किल हालात के लिए नहीं, बल्कि किसी भी महत्वपूर्ण फैसले से पहले किया जा सकता है, ताकि अल्लाह से बरकत और हिदायत हासिल हो।
Conclusion:
इस्तिखारा एक खास इबादत है, जिसके जरिए इंसान अल्लाह से अपने फैसलों में सही राह दिखाने की दुआ करता है। यह दो रकात नफ्ल नमाज़ और एक विशेष दुआ के साथ किया जाता है, जिसमें अल्लाह से यह इल्तिजा की जाती है कि अगर कोई काम हमारे लिए बेहतर है, तो उसे आसान बना दे और अगर नुकसानदेह है, तो उससे दूर कर दे। इस्तिखारा करने से इंसान को मानसिक सुकून, अल्लाह की रहमत और सही फैसले की तरफ रहनुमाई मिलती है। इसका सही मतलब सिर्फ किसी इशारे या सपने का इंतजार करना नहीं, बल्कि अपने दिल के झुकाव और हालात पर गौर करके अल्लाह की दी हुई हिदायत को समझना है। यह हमें अपनी इच्छाओं से हटकर अल्लाह की मर्ज़ी पर भरोसा करना सिखाता है और हर छोटे-बड़े फैसले में बरकत लाने का जरिया बनता है।
Thanks
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