Story Of Umar Bin Khattab in Hindi | हज़रत उमर बिन ख़त्ताब की पूरी कहानी

उमर बिन खत्ताब (र.अ.) इस्लाम के महानतम शख़्सियत में से एक हैं, जिनकी हिम्मत, न्यायप्रियता और क़यादत की मिसालें आज भी दी जाती हैं। हर मुसलमान उनके नाम, उनकी बहादुरी की दास्ताँ और उनके बेमिसाल योगदान से वाक़िफ़ है। वह इस्लाम के दूसरे खलीफा थे, जिनके कार्यकाल में इस्लामी खिलाफत ने बहुत तेज़ी से विस्तार किया, उनकी ख़िलाफ़त 22 लाख वर्ग मील से अधिक भूमि तक फैली हुई थी, जिसमें फारस, शाम (सीरिया), मिस्र और इराक जैसी विशाल सल्तनतें शामिल थीं।

उमर बिन खत्ताब (र.अ.) की जीवन गाथा(Life Story Of Umar Bin Khattab) बहादुरी, ईमान और इन्साफ की निशानी है। उनकी कहानी न केवल प्रेरणादायक है बल्कि हर मुसलमान के लिए एक प्रेरता का ज़रिया है, इस लेख में हम उनके प्रारंभिक जीवन(Early Life), इस्लाम स्वीकार करने करने का किस्सा, उनकी क़यादत की सलाहियत और उनके शासनकाल की महान उपलब्धियों पर रौशनी डालेंगे। आखिर ऐसा क्या था जिसने उन्हें इतिहास के सबसे प्रभावशाली और आदर्श शासकों में से एक बना दिया? आइए, जानते हैं उमर बिन खत्ताब (र.अ.) की प्रेरणादायक कहानी (The Story Of Umar Bin Khattab).

Story Of Umar Bin Khattab in Hindi
Story Of Umar Bin Khattab in Hindi 

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Early Life Umar Ibn Khattab | उमर इब्न खत्ताब का प्रारंभिक जीवन

हज़रत उमर इब्न खत्ताब (र.अ.) बनू अदी कबीले से ताल्लुक रखते थे, जो कुरैश जनजाति का एक कबीला था। उनके पिता का नाम ख़त्ताब इब्न नुफ़ैल था। हज़रत उमर अपने सख्त मिजाज़ और मज़बूत फितरत के लिए जाने जाते थे, जिसके वजह से लोग उनसे बेहद खौफ खाते थे। इसी सख़्त मिजाज़ के वजह से वह शुरुआती दौर में वे इस्लाम के बड़े दुश्मनों में से एक थे।

एक दिन, ग़ुस्से में आ कर, वे अपनी तलवार लेकर अल्लाह के रसूल (ﷺ) को क़त्ल करने के इरादे से निकले, रास्ते में उनकी मुलाकात एक सहाबी से हुई, जिन्होंने उनकी राह मोड़कर उन्हें उनकी बहन के घर भेज दिया, वहां पहुंचकर जब उन्होंने अपनी बहन और बहनोई को कुरआन की आयतें पढ़ते सुना, तो उनका दिल पिघल गया। यही वह ऐतिहासिक वक़्त था जब हज़रत उमर (र.अ.) के दिल में ईमान की रोशनी उतरी, और उन्होंने इस्लाम क़बूल कर लिया।

हज़रत उमर की पहली बीवी ज़ैनब बिन्त मज़ऊन थीं, जो एक सहाबी उस्मान बिन मज़ऊन (र.अ.) की बहन थीं। उनसे उनके बेटे अब्दुल्लाह इब्न उमर (र.अ.) का जन्म हुआ, जो आगे चलकर इस्लाम के महान आलिम और प्रसिद्ध सहाबा में से एक बने।

How Did Umar Bin Khattab Become Muslim | उमर इब्न ख़त्ताब मुस्लिम कैसे बने 

उमर बिन खत्ताब मुस्लिम कैसे बने, यह अपने आप एक एक इंस्पिरेशनल किस्से में से एक है, अपनी बहन के घर क़ुरआन की तिलावत सुनने से पहले भी उनके दिल में इस्लाम दाखिल हो चुका था, जब उन्होंने नबी(ﷺ) को नमाज़ पढ़ते सुना था।

चूंकि हज़रत उमर (र.अ.) सोचने- समझने वाले इंसान थे लिहाज़ा उन पर इस वाक़ए का असर हुआ, जिसे उन्होंने ने बयान करते वक्त फरमाया कि मेरा दिल उस वक्त ईमान ला चुका था।

वह वाक्या कुछ इस तरह से है, एक मर्तबा जब उन्हें घर से बाहर रात गुजारनी पड़ी तो वह हरम शरीफ के पास चले गए और उसके पर्दे से खुद को छुपा लिया, उसी मौके पर नबी करीम(ﷺ) हरम शरीफ के अंदर नमाज़ पढ़ रहे थे, और सुरह हाक़्क़ा की तिलावत कर रहे थे, हज़रत उमर बड़े गौर से तिलावत को सुनने लगे, और दिल ही दिल में कहा कि खुदा की कसम ये तो शायर जैसा है, जैसा कि कुरैश अक्सर कहा करते थे लेकिन तब ही नबी(ﷺ) ने सुरह हाक़्क़ा(Surah 69) की ये आयत पढ़ी ۞وَّمَا هُوَ بِقَوۡلِ شَاعِرٍ‌ؕ قَلِيۡلًا مَّا تُؤۡمِنُوۡنَۙ  यानी यह एक बुजुर्ग रसूल का कौल है. यह किसी शायर का कौल नहीं, तुम लोग कम ही ईमान लाते हो(40-41). 

Must Read: कुरान को समझना क्यों ज़रूरी?

हज़रत उमर फरमाते हैं कि मैंने अपने मन में कहा यह तो काहिन (Priest) है इतने में अगले आयत भी उनके कान में पड़ी, ۞وَلَا بِقَوۡلِ كَاهِنٍ‌ؕ قَلِيۡلًا مَّا تَذَكَّرُوۡنَؕ  मतलब यह किसी काहिन का कौल भी नहीं, तुम लोग कम ही नसीहत कुबूल करते हो, यह रब उल आलमीन की तरफ से नज़िल किया गया है। इसी वाक़ए पर उमर (رضي الله عنه) फरमाते हैं कि उस वक्त मेरा दिल ईमान ला चुका था। 

यह था हज़रत उमर(र.अ.) के इस्लाम लाने का वाक़्या (The incident of Hazrat Umar accepting Islam).

अब हम जानेंगे की वह क्या खूबियां थी जो उनको ख़ास बनाती थी।

What Makes Hazrat Umar So Special | हज़रत उमर को इतना ख़ास क्या बनाता है

हज़रत उमर के इतने खास बनने की सफर पैगंबर ﷺ की दुआ से शुरू हुई। जैसा कि तिर्मिज़ी शरीफ़ 3681 में तज़्किरा किया गया है, जिसके रावी उमर हैं कहा कि पैगंबर ﷺ ने दुआ की: 

या अल्लाह! इन दो लोगों में से जो तुम्हें सबसे महबूब है, उसके द्वारा इस्लाम का सम्मान करा : अबू जहल के द्वारा या उमर बिन अल-खत्ताब के द्वारा।" उन्होंने कहा  "और उनमें से सबसे महबूब शख़्स उमर था।"

लेकिन यह सिर्फ यह दुआ नहीं थी जिसने उन्हें काबिल ए ज़िक्र बना दिया बल्कि उनका दूरदर्शी सोच(Visionary Thinking ) अल्लाह (SWT) की तरफ से एक तोहफा था, जो नीचे दिए गए दलील से साबित होता है.


Umar’s Alignment with Divine Revelation | उमर की बातों का क़ुरान में आना

ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ हज़रत उमर (र.अ.) ने कुछ सुझाव दिया और बाद में अल्लाह ने उनके बातों की सहमति करने वाली आयतें उतारीं, जैसा कि सहीह बुखारी में है:

उमर बिन अल-खत्ताब(र.अ.) ने रिवायत किया: मेरे रब ने तीन बातों में मुझसे सहमति जताई: 

1. मैंने कहा, "ऐ अल्लाह के रसूल (ﷺ), मैं चाहता हूँ कि हम इब्राहीम के स्थान को अपनी प्रार्थना स्थल(इबादतगाह) के रूप में लें। तो अल्लाह की वही आई: और तुम (लोगों) इब्राहीम के स्थान को अपनी इबादतगाह के तौर में लें (अपनी कुछ प्रार्थनाओं के लिए जैसे कि काबा के तवाफ़ की दो रकात)"। (2.125) 
2. और महिलाओं के पर्दा करने के बारे में, मैंने कहा, 'ऐ अल्लाह के रसूल (ﷺ)! मैं चाहता हूँ कि आप अपनी बीवियों को गैरमर्दो से खुद को ढकने का हुक्म दें क्योंकि अच्छे और बुरे लोग उनसे बात करते हैं।' तो महिलाओं के पर्दा(हिजाब) करने की आयत उतरी। 
3. एक बार पैगंबर (ﷺ) की पत्नियों ने पैगंबर (ﷺ) के खिलाफ एकजुट मोर्चा बनाया और मैंने उनसे कहा, 'ऐसा हो सकता है कि अगर वह (पैगंबर) तुम्हें तलाक दे दें, तो उनका अल्लाह तुम्हारे बदले उन्हें तुमसे बेहतर पत्नियाँ दे देगा।' इसलिए यह आयत (जैसा मैंने कहा था) उतरी।" (66.5)  
—सहीह बुख़ारी 402

उनकी सोच के वजह से ही नबी(ﷺ) ने उन्हें फ़ारूक़ का लक़ब दिया जिसका मतलब होता है फर्क करने वाला, — 

तिर्मिज़ी की इस हदीस में अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया कि :

‏ لَوْ كَانَ بَعْدِي نَبِيٌّ لَكَانَ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ 

मेरे बाद कोई नबी होता तो वह उमर होता।

His Responsibility as a Leader | एक खलीफा के रूप में उनकी जिम्मेदारी

नबी की दुआ, अल्लाह का तौहफा इसके अलावा अल्लाह का डर और भी उन्हें एक आदर्श इंसान बनाता है, एक खलीफा के तौर पर उन्होंने कभी इसका कभी नाजायज़ फायदा नहीं उठाया, उन्होंने अपनी खिलाफत में 22 लाख वर्ग मील को जीता था लेकिन हमेशा बादशाही निज़ाम के ख़िलाफ़ रहे।


Conclusion on Story Of Hazrat Umar Bin Khattab 

यह था हज़रत उमर (र.अ.) की ज़िन्दगी(Life Story Of Umar Bin Khattab) पर एक मुख़्तसर लेख, जिनमे हमने यह मुख्य बातें जानी कि

  • हज़रत उमर (र.अ.) की शुरूआती ज़िन्दगी: सख़्त मिजाज़ और मजबूत शख़्सियत के लिए जाने जाते थे।
  • इस्लाम कबूल करने की इंस्पिरेशनल घटना: जब उन्होंने अपनी बहन के घर कुरआन सुना, तो उनका दिल पिघल गया और उन्होंने इस्लाम अपना लिया।
  • पैगंबर (ﷺ) की दुआ का असर: उमर (र.अ.) के इस्लाम लाने की खास दुआ पैगंबर (ﷺ) ने मांगी थी।
  • इंसाफ पसंदी और क़यादत की सलाहियत: उन्हें "अल-फारूक़" (सच और झूठ में फर्क करने वाला) का लक़ब दिया गया था।
  • ख़िलाफत का विस्तार: उनकी खिलाफत में इस्लाम 22 लाख वर्ग मील तक फैला, जिसमें फारस, मिस्र, सीरिया, इराक शामिल थे।
  • क़ुरआन में उनकी सोच की पुष्टि: उनकी कही गई कई बातें बाद में क़ुरआन की आयतों के रूप में नाजिल हुईं।
  • सादगी और विनम्रता: इतने बड़े साम्राज्य के ख़लीफा होने के बावजूद वह बहुत ही साधारण ज़िन्दगी गुज़ारा करते थे।
  • प्रशासनिक सुधार: उन्होंने पहली बार पुलिस व्यवस्था, वित्तीय प्रबंधन, जनसंख्या गणना और सार्वजनिक सुविधाओं को लागू किया।
  • न्यायप्रियता की मिसाल: गरीबों, जरूरतमंदों और गैर-मुस्लिमों के साथ भी समान व्यवहार किया।
  • शहादत एक फारसी गुलाम अबू लालो ने नमाज़ के दौरान उन पर हमला किया, जिससे उनकी शहादत हो गई।

हज़रत उमर बिन खत्ताब (र.अ.) की जीवन गाथा बहादुरी, ईमान, न्याय और अद्वितीय नेतृत्व की मिसाल है। उनके इस्लाम स्वीकार करने से लेकर, उनकी खिलाफत तक, हर पहलू में हमें सीखने के लिए बहुत कुछ मिलता है। उन्होंने इस्लामिक शासन को एक सुव्यवस्थित प्रशासनिक प्रणाली में ढाला, सामाजिक न्याय की अनूठी मिसाल पेश की और अपने सरल जीवन से यह साबित किया कि सच्चा नेतृत्व दिखावे से नहीं, बल्कि सेवा और ईमानदारी से आता है।

उनकी विरासत आज भी दुनिया भर में प्रेरणा का स्रोत है। न्याय, निडरता, और दूरदर्शिता की जो मिसाल उन्होंने कायम की, वह हमेशा याद रखी जाएगी। उनके बताए गए उसूलों को अपनाकर, हम भी एक बेहतर समाज और मजबूत नेतृत्व की ओर बढ़ सकते हैं।

Endnote From Author: 

मैंने इस आर्टिकल को लिखने में Ar- Raheequl Makhtoom के चैप्टर "हज़रत उमर का इस्लाम क़ुबूलना" का सहारा लिया है, और बाकी की दलीलें मैंने ऊपर ही दे दीं हैं. अगर आपको इसमें कोई ख़ामी नज़र आती है तो बेझिझक कॉमेंट करें या मुझे कांटेक्ट करें, मेरे Contact Us पेज पर बात करने के तरीके बताये गए हैं.— जज़ाकल्लाह ख़ैर 

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